छत्तीसगढ़ का प्रतीक चिन्ह|Symbol Of Chhattisgarh       

[ CHAPTER -3 ]

छत्तीसगढ़ राज्य के प्रतीक चिह्न, राज्य पशु एवं राज्य पक्षी (Chhattisgarh State Emblem, State Animal and State Bird) 
भारतीय संघ के 26वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ के अस्तित्व में आने के बाद राज्य की राजनैतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं भौगोलिक सत्ता से सम्बद्ध ये आदर्श छत्तीसगढ़ की पारंपरिक गरिमा और यहाँ की समस्त जनभावना के अनुरूप राज्य और देश में छत्तीसगढ़ की सत्ता का प्रतिनिधित्व करते हुए विभिन्न स्थितियों में राज्य के सम्मान के द्योतक हैं.
राजकीय प्रतीक चिन्ह (State Emblem)
आदर्श वाक्य सत्यमेव जयते
अशोक स्तंभ (मध्य में भारत का प्रतीक) (लाल रंग) राज्य प्रतीक के मध्य में स्थित
गोलाकार चिह्न (हरा रंग) 36 गढ़ों के मध्य सुरक्षित विकास की अदम्य आकांक्षाओं को प्रदर्शित करते हुए
धान की बालियां (सुनहरा रंग) खाद्यान फसलों की आत्म निर्भरता को प्रदर्शित करते हुए
ऊर्जा प्रतीक (विद्युत) (नीले रंग) राज्य की ऊर्जा समृद्धि में प्रदर्शित
नदियों को रेखांकित करती लहरें (जल संसाधन) राष्ट्रध्वज रंगों (तिरंगों के रंग) में, जलसमृद्धि को प्रदर्शित करते हुए,
4 सितम्बर, 2001 को मंत्रिमण्डल ने छत्तीसगढ़ राज्य शासन के अधिकृत प्रतीक चिह्न को निर्धारित और स्वीकृत कर तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया. यह चिह्न राज्य की विरासत, अपार सम्पदा और इसके उपयोग की अनंत सम्भावनाओं का प्रतीकात्मक स्वरूप है. प्रतीक चिह्न की वृत्ताकार परिधि राज्य के विकास की निरन्तरता को दर्शाती है. इस चिह्न के बाहरी वृत्त में छत्तीसगढ़ के छत्तीस किले वृत्त पर बाहर की ओर अंकित हैं. इन किलों का हरा रंग राज्य की समृद्धि, वन सम्पदा और नैसर्गिक सुन्दरता को प्रतिबिम्बित करता है. इस बाहरी हरे वृत्त के भीतर स्वर्णिम आभा बिखेरती धान की बालियाँ दिखाई गई हैं, जो यहाँ की परम्परागत कृषि पद्धति के साथ खाद्यान्न आत्मनिर्भरता को बताती हैं. प्रतीक चिह्न में ऊर्जा क्षेत्र में सक्षमता व सम्भावनाओं को विद्युत् संकेत के द्वारा दर्शाया गया है तथा नीचे से ऊपर की ओर तीन लहराती रेखाएं राज्य के समृद्ध जल संसाधन का प्रतीक हैं. तिरंगे के तीन रंग छत्तीसगढ़ की राष्ट्र के प्रति एकजुटता तथा मध्य में राष्ट्रीय सारनाथ के चार सिंह और उसके नीचे ‘सत्यमेव जयते’ राष्ट्र के प्रति सत्यनिष्ठा के प्रतीक हैं.
नोट:- छ.ग. के प्रतीक चिन्ह को 4 सितम्बर 2001 को राज्य शासन द्वारा स्वीकृति प्रदान किया गया जबकि हर्बल स्टेट 4 जुलाई 2001 को घोषित किया गया है ।
छत्तीसगढ़ राज्य के पशु एवं पक्षी (Animals and Birds of Chhattisgarh State)
  • राज्य शासन ने जुलाई 2001 को राज्य पशु और पक्षी के रूप में प्रदेश में दुर्लभ हो चुके क्रमशः ‘जंगली भैंस’ और ‘बस्तरिया पहाड़ी मैना’ को चुना है. विलुप्त होने के खतरे की कगार पर पहुँच चुके ये दुर्लभ प्राणी एक समय यहाँ प्रकृति की गोद में निर्बाध विचरण करते पर्याप्त मात्रा में देखे जाते थे. दिखने में सुन्दर, कोमल और भावुक मैना की मनुष्य की भाँति बोलने और मनुष्य की आवाज और भाषा की सटीक नकल कर लेने की उसकी प्रतिभा आज उसके अस्तित्व के लिए खतरा बन गई है. परिणामतः बस्तर के पहाड़ों में रहने वाली यह पक्षी प्रजाति विलुप्ति की स्थिति में है और बस्तर के केवल कुछ क्षेत्रों में दिखती है.
  • यही स्थिति जंगली भैंसे की है. पूर्व में ये सम्पूर्ण प्रदेश में मिलते थे. हर्ष के दरबारी संस्कृत के महाकवि बाणभट्ट ने विद्यावती से दंडकारण्य अर्थात् बांधवगढ़ से बस्तर तक के क्षेत्र का विषद् वर्णन अपने ग्रंथ कादंबरी में किया है. उसमें वन भैंसे के लिए ‘सदा सन्निहित मृत्युभीषण महिष’ का संदर्भोल्लेख है. इसे यमराज के वाहन अर्थात् साक्षात् मृत्यु का प्रतीक बताते हुए बाणभट्ट ने उक्त क्षेत्र में इनके प्रचुरता में पाए जाने का उल्लेख किया है. 20वीं सदी के आरम्भ तक ये अमरकंटक से लेकर दंडकारण्य तक के क्षेत्र में पाए जाते थे, जिसकी पुष्टि कैप्टन जे. फोरसिथ (1858 ई.) और जे. डब्ल्यू. बैस्ट (1925 ई.) के संस्मरण लेखों से होती है. फोरसिथ ने बिलासपुर के वनों में इनके अनेक झुंड देखे थे, किन्तु पिछले सदी के आरम्भिक दशकों में ये बिलासपुर और रायपुर के वनों से सिमट कर बस्तर तक सीमित हो गए. इनकी संख्या और क्षेत्र में कमी के मुख्य कारण हैं- अनुकूल प्राकृतावास का कम होते जाना, शिकार एवं पालतू भैंसों में पाई जाने वाली ‘रिंडरपेस्ट’ जैसी संक्रामक बीमारियों का संक्रमण, साथ ही कभी -कभी इनके द्वारा समीप के बसाहट पालतू भैंसों से प्रजनन भी इनकी नस्ल में मिलावट का खतरा होता है.
  • आज इन वन्य प्राणियों को राज्य के सबसे महत्वपूर्ण पशु एवं पक्षी का स्थान मिल गया है. शासकीय घोषणा इन दोनों के संरक्षण की आवश्यकता को रेखांकित करती है. निश्चय ही पूर्व से कानूनी एवं विभागीय संरक्षण प्राप्त इन प्राणियों को विशेष राजकीय स्थिति प्राप्त होने से इनके संरक्षण में गुणात्मक वृद्धि होगी.
छत्तीसगढ़ का राजकीय पशु – जंगली भैंसा (Bubalus bubalis) 
  • हिन्दी में – अरना (नर), अरनी (मादा)
  • वितरण – ये मुख्यतः नेपाल की तराई के घास वनों में, असम में ब्रह्मपुत्र के मैदान में, ओडिशा के कुछ हिस्सों में अत्यल्प संख्या में और छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में प्रमुखतः इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान, कुटरू वन क्षेत्र एवं उदयंती अभयारण्य में पाए जाते हैं.
  • शारीरिक संरचना – यह विशाल, कंधे पर औसतन 5 फीट तक लम्बा और 900 किग्रा वजन का प्राणी होता है. इसके सींग अधिकतम 197-6 सेमी तक लम्बे दर्ज किए गए हैं. यह दिखने में पालतू भैंस से मिलता- जुलता होता है, लेकिन उससे अधिक भारी एवं विशाल होता है. सम्पूर्ण शरीर काला (Slaty-black) होता है, किन्तु जन्म के समय यह (Calf) लगभग पीला होता है. घुटने और खुर के मध्य पैर मटमैला सफेद होता है. इसके सींग दो तरह के होते हैं – एक में यह माथे से ऊपर की ओर अर्धवृत्ताकार होता है, जिसमें दोनों छोरों (Horn tips) के मध्य अन्तराल अत्यंत कम होता है, दूसरे में ये माथे से बाहर की ओर लगभग समानांतर और घुमाव थोड़ा ऊपर की ओर होता है. इसमें छोरों के मध्य अन्तराल अधिक होता है. एक ही झुंड (Herd) में दोनों प्रकार मिल सकते हैं और इन दोनों प्रकारों के मध्य भी थोड़े अन्तर के साथ (intergrading between the two forms) अनेक उप- प्रकार भी मिलते हैं.
  • आवास – लम्बे घासयुक्त, दलदली एवं जलयुक्त स्थलों, जिनके किनारे लम्बी घास उपलब्ध हो, इनके लिए आदर्श प्राकृतावास है. लोटने के लिए कीचड़ एवं डूबे रहने के लिए पानी की उपलब्धता, भोजन के बाद इनकी प्रथम आवश्यकता है, किन्तु कठोर मैदानी क्षेत्र, जिसमें घास के फैलाव के साथ वृक्ष भी हों एवं वर्ष भर बहने वाले नाले, नदियाँ सम्पूर्ण क्षेत्र में फैले हों, ऐसे क्षेत्र प्रदेश में अत्यंत कम हो चले हैं. बायसन के विपरीत ये वनों के समीप की बसाहट से लगे खेतों में प्रवेश कर जाते हैं.
  • भोजन – ये शाकाहारी होते हैं और घास इनका प्रमुख आहार है.
  • प्रजनन – सामान्यतः वर्षा के अन्त में प्रजनन होता है और मार्च से मई के मध्य में युवा (Calf) जन्म लेते हैं.
  • शत्रु – यद्यपि ये शांत प्रवृत्ति के होते हैं, किन्तु अचानक हमला कर देते हैं. इन्हें उकसाने या उत्तेजित करने की आवश्यकता नहीं होती. इनके प्रमुख शत्रुओं में शेर और मावन शिकारी हैं, किन्तु शक्तिशाली भैंसा शेर को भी खदेड़ देता है. ‘रिंडरपेस्ट’ जैसी बीमारी इनकी नस्ल के लिए घातक है.
  • संरक्षण – इनकी संख्या में वृद्धि करने हेतु इन्हें राज्य के अन्य क्षेत्रों में ले जाकर छोड़ा जाना चाहिए, ताकि बस्तर के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी ये स्थापित हो सकें. वन्य प्राणी विशेषज्ञों ने इन्हें निश्चेष्ट कर इनके स्थानान्तरण की विधि प्रस्तुत कर दी है, जिसमें ‘एटोरफीन’ हाइड्रोक्लोराइड’ एवं ‘एसीपी’ की उचित मात्रा का डार्टसंधान कर उपयोग किया जाता है. अन्य क्षेत्रों में स्थापित करने से किसी एक क्षेत्र में महामारी आदि से इनके समूल नष्ट होने का खतरा नहीं होगा.
छत्तीसगढ़ का राजकीय पक्षी – पहाड़ी मैना (Gracula Religiosa Peninsularis)
  • यह एक जबरदस्त नकलची पक्षी है, इसीलिए पिंजरे के पक्षी के रूप में इसकी भीषण माँग है. प्राणिशास्त्र में चार प्रकार की पहाड़ी मैनाओं का विवरण मिलता है, जो क्रमशः – उत्तरी (ग्रेकुला रिलिजियोसा), दक्षिणी (ग्रेकुला इंटरमीजिया), पूर्वी (ग्रेटि पेनिन्सुलेरिस) एवं अंदमान हिल – मैना (ग्रेटि अंडमानेन्सिस) हैं. इसमें तीसरे नम्बर का ‘ग्रेटि पेनिन्सुलेरिस’ बस्तर हिल मैना है.
  • वितरण – बस्तर में अबूझमांड़, छोटे डोंगर, बेची, बारसूर, पुलचा, तिरिया और बैलाडिया गिरि शृंखला आदि तक सीमित हैं.
  • शारीरिक संरचना – इसके पंख काले, जिसके छोर सफेद होते हैं; चोंच गुलाबी, पीली कंठ और पैर भी पीले होते हैं तथा लम्बाई अधिकतम एक फीट तक होती है.
  • आवास – पर्वतीय वन क्षेत्र में पेड़ों के छत्रों पर बसने वाला पक्षी है. मार्च-अप्रैल के महीने में, यह ऊँचे वृक्ष के कोटरों में अंडे देती है तथा मई-जून में इसके बच्चे देखे गए हैं.
  • शत्रु – इसी पक्षी के दुर्लभ होने का प्रमुख कारण समृद्ध घरों में इसकी बेतहाशा माँग है, जिसकी पूर्ति तस्कर पकड़ द्वारा होती है. इसके संरक्षण के लिए केवल इसके प्राकृतिक क्षेत्रों को सुरक्षित करना ही पर्याप्त नहीं है. इसके लिए छिपकर इसके बच्चों को पकड़ने वालों पर पूर्ण रोक लगाना ही एकमात्र उपाय है. इसके लिए वनों के भीतर बेरोकटोक आवाजाही को भी प्रतिबन्धित करना होगा. साथ ही इसके व्यक्तिगत रूप से पाले जाने पर पूर्ण रोक हेतु वर्तमान कानूनी प्रावधानों को अधिक युक्तियुक्त एवं कठोर बनाना होगा.
  • संरक्षण – इनके संरक्षण के लिए एक पक्षी उद्यान निर्मित किया जाना चाहिए, जिसमें विशाल पिंजरों के भीतर इनके प्रजनन द्वारा संख्या वृद्धि कर जंगल में छोड़े जाने की व्यवस्था हो.

इन्हें भी देंखे

छत्तीसगढ़ का राजकीय वृक्ष – साल/सरई (Shorea Robusta)
बस्तर को साल वनों का द्वीप कहते हैं ।
छत्तीसगढ़ की आकृति – सी. हार्स/हिप्पोपोटेमस
छत्तीसगढ़ की आकृति सी. हार्स/हिप्पोपोटेमस (समुद्री घोड़े) के समान दिखाई देता है।
छत्तीसगढ़ का राजकीय भाषा छत्तीसगढ़ी ( स्वीकृति 28 नवम्बर 2007 को )
जिसके कारण राज्य शासन द्वारा प्रतिवर्ष 28 नवम्बर को छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस मनाया जाता है ।
छ.ग का राजकीय प्रतीक वाक्य विश्वसनीय छ.ग. (Crediable Chhattisgarh)
भारत का प्रतीक वाक्य इनक्रेडीएबल इंडिया (Incrediable India)

छत्तीसगढ़ सामान्य परिचय | Introduction of Chhattisgarh [ CHAPTER -1 ]

छत्तीसगढ़ राज्य में प्रथम |First in the state of Chhattisgarh  [ CHAPTER -2 ]

सभी विषयों का टेस्ट सिरीज विषय वार समावेश किया गया है (All Subject Wise Mock Test Series)

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